परिचय
'राज्य
उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग,
उत्तर प्रदेश',
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम 2019
के
प्रावधानों के अन्तर्गत प्रदेश के उपभोक्ता विवादों का शीघ्र
एवं न्यायिक प्रक्रिया के माध्यम से समाधान करने वाला
अर्द्धन्यायिक प्रकृति का शासकीय विभाग है। इसका क्षेत्राधिकार
सम्पूर्ण उत्तर प्रदेश है। यहॉ रू. पचास लाख से अधिक व रू.
दो करोड़ तक
के उपभोक्ता विवाद सम्बन्धी मामले सीधे दायर किये जाते हैं।
प्रदेश
में स्थापित 79 जिला
आयोग,
राज्य आयोग के प्रशासनिक नियंत्रण के अधीन
कार्य करते हैं तथा यह इन जिला
आयोगों के अपीलीय न्यायालय के रूप में भी कार्य करता है। उच्च
न्यायालय के कार्यरत अथवा सेवानिवृत्त न्यायाधीश राज्य आयोग
मे अध्यक्ष होते हैं तथा सरकार द्वारा नियत संख्या में सदस्य
होते हैं। वर्तमान में राज्य आयोग में सदस्यों की विहित संख्या
04 है। वर्तमान में राज्य आयोग के अध्यक्ष
मा० न्यायमूर्ति श्री आशोक कुमार हैं। मा. सदस्य
श्री राजेन्द्र सिंह, सेवानिवृत्त एच.जे.एस.,
श्री सुशील कुमार, सेवानिवृत्त एच.जे.एस.,
श्री विकास सक्सेना, सेवानिवृत्त एच.जे.एस.
एवं
महिला सदस्य के रूप में डा० आभा गुप्ता
सेवानिवृत्त आई.ए.एस.
कार्यरत हैं। राज्य आयोग के निबंधक का पद उच्चतर न्यायिक सेवा
संवर्ग का पद होता है। वर्तमान में राज्य आयोग के निबंधक श्री
प्रदीप कुमार
III,
एच.जे.एस.
कार्यरत हैं।
इतिहास
उपभोक्ता के हितों के श्रेष्ठतर संरक्षण और उपभोक्ता विवादों
के सरल प्रक्रिया द्वारा कम लागत में शीघ्र व समुचित समाधान के
लिए भारतीय संसद द्वारा दिनांक 24 दिसम्बर,
1986 को उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम,
1986 (1986 का अधिनियम संख्याक 68) पारित
किया गया। यह अधिनियम दंडात्मक या निरोधक स्वरूप का न होकर
क्षतिपूरक स्वरूप का है। यह अधिनियम चार अध्यायों में
विभक्त है। अधिनियम का अध्याय 1 परिचयात्मक है जिसमें
परिभाषाएं व अधिनियम के विस्तार,
प्रारम्भ और लागू होने सम्बन्धी उपबंध हैं। अध्याय 2 के
अंतर्गत केन्द्र, राज्य एवं जिला स्तर
पर उपभोक्ता संरक्षण परिषद् के गठन व उनके उद्देश्य सम्बन्धी
उपबंध हैं। अध्याय 3 के अंतर्गत उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
अभिकरणों अर्थात जिला मंच, राज्य आयोग व
राष्ट्रीय आयोग के गठन, अधिकारिता व
उनकी कार्य प्रक्रिया आदि से संबधित उपबंध हैं। अध्याय 4 के
अन्तर्गत उपबंधों को कार्यान्वित करने के लिए केन्द्रीय सरकार व
राज्य सरकार को अधिसूचना द्वारा नियम बनाये जाने की शक्तियॉं
प्रदान किये जाने संबंधी प्रावधान हैं। इसी प्रावधान के अंतर्गत
अधिनियम की धारा 30 की उपधारा 2 के अधीन शक्ति का प्रयोग करके
प्रदेश सरकार द्वारा अधिसूचना संख्या सीपी 72/
उन्तीस-10-सीपी(8)-87 दिनांक 31 अगस्त,
1987 के माध्यम से
उत्तर
प्रदेश उपभोक्ता संरक्षण नियमावली,
1987 प्रख्यापित
की गयी।
तदोपरान्त
उपभोक्ता संरक्षण अधिनियम, 2019 पारित किया गया जो दिनांक 20
जुलाई, 2020
को प्रवृत्त हुआ के अध्याय 4 में
त्रिस्तरीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोगों की स्थापना के उपबंध
हैं जिसके अन्तर्गत राष्ट्र स्तर पर 'राष्ट्रीय उपभोक्ता
विवाद प्रतितोष आयोग' नई दिल्ली तथा प्रत्येक राज्य
स्तर पर ''राज्य उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग'' एवं प्रत्येक
जिले में कम से कम एक 'जिला उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग' गठित
किये जाने का प्रावधान है। राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद प्रतितोष
आयोग को संक्षेप में 'राष्ट्रीय आयोग', राज्य उपभोक्ता विवाद
प्रतितोष आयोग को संक्षेप में 'राज्य आयोग' व जिला
उपभोक्ता विवाद प्रतितोष आयोग को संक्षेप में 'जिला आयोग' के नाम
से जाना जाता है।
उपभोक्ता संरक्षण (जिला आयोग,
राज्य आयोग और
राष्ट्रीय आयोग की अधिकारिता) नियम,
2021 के
नियम-3 के अनुसार जिला आयोग की अधिकारिता,
ऐसी शिकायतों
पर होगी,
जिनमें माल एवं
सेवाओं के प्रतिफल के रूप में भुगतान किया गया मूल्य पचास लाख
रूपये से अधिक न हो,
नियम-4 में
राज्य आयोग की अधिकारिता अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अधीन और
धारा 47 की उप-धारा (1) के खण्ड (क) के उप खण्ड (i)
के परन्तुक के अनुसरण में,
राज्य आयोग
की अधिकारिता,
ऐसी शिकायतों
पर होगी,
जिनमें माल
एवं सेवाओं के प्रतिफल के रूप में भुगतान किया गया मूल्य पचास लाख
रूपये से अधिक हो किन्तु दो करोड़ रूपये से अधिक न हो,
राष्ट्रीय
आयोग की अधिकारिता अधिनियम के अन्य उपबन्धों के अध्यधीन और धारा
58 की उप धारा (1) के खण्ड (क) के उप खण्ड (i)
के परन्तुक के अनुसरण में,
राष्ट्रीय
आयोग की अधिकारिता,
ऐसी शिकायतों
पर होगी,
जिनमें माल
एवं सेवाओं के प्रतिफल के रूप में भुगतान किया गया मूल्य दो करोड़
रूपये से अधिक हो।
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